कुंडली में ग्रहों के बीच सम्बन्ध कैसे देखें?
हम ग्रहों की दृष्टि व सम्बन्ध पर अपने कुछ विचार व्यक्त कर रहे हैं ग्रहों की दृष्टि या सम्बन्ध 05प्रकार से होता है
परस्पर दृष्टि सम्बन्ध - ये ग्रह जब परस्पर एक , दूसरे पर दृष्टि रखते है इन्हे परस्पर दृष्टि सम्बन्ध कहते है जैसे लग्न में सूर्य हो और सप्तम में शनि ये परस्पर दृष्टि सम्बन्ध होता है शुभ ग्रहों का शुभ मानते हैं पापी ग्रहों का अशुभ इसी प्रकार मित्र दृष्टि सम्बन्ध शुभ व शत्रु ग्रहों का अशुभ मानते हैं|
राशि परवर्तन सम्बन्ध - दो ग्रह जब परस्पर एक दूसरे की राशि में होते हैं उन्हें परस्पर राशि सम्बन्ध कहते हैं जैसे सूर्य मकर राशि में हो और शनि सिंह राशि में होने से राशि परिवर्तन सम्बन्ध कहते हैं|
एकतर दृष्टि सम्बन्ध - जब एक ग्रह की दृष्टि दूसरे पर हो किन्तु दूसरे ग्रह की दृष्टि पहले ग्रह पर ना हो जैसे मंगल से चतुर्थ। भाव चंद्र है तो मंगल ग्रह की दृष्टि चंद्र पर है लेकिन चंद्र की दृष्टि मंगल पर नहीं है यहां एक बात समझना जरूरी है कि मानालो कि गुरु की दृष्टि शनि पर हो और शनि की दृष्टि गुरु पर नहीं है तो शुभ है शनि के पाप प्रभाव को कम करेगा लेकिन शनि की दृष्टि गुरु पर हो और गुरु की दृष्टि शनि पर नहीं है तो गुरु यहां अशुभ प्रभाव देगा।
सहस्थान या युति सम्बन्ध - जब दो ग्रह एक ही राशि पर हो तो उनमें सहस्थान या युति सम्बन्ध बनता है शुभ ग्रहों का योग शुभ प्रभाव होता है अशुभ ग्रहों की युति होने से अशुभ प्रभाव होता है ऐसे ही भावो से समझना चाहिए।
ये अंतिम सम्बन्ध है और विशेष महत्त्व पूर्ण भी है ऐसे समझने के लिए मुझे उदहारण लेना होगा शनि दशम में बैठा है तो वह लग्न पर प्रभाव दिखयेगा ऐसे ही चंद्र चतुर्थ भाव में है तो वह अपना प्रभाव सप्तम पर रखेगा ऐसे ही तीसरे भाव में मंगल है तो वह ग्यारह भाव में प्रभाव देगा पंचम भाव में बुध है तो वह नवम भाव में अपना प्रभाव देगा इसी प्रकार दूसरे भाव में कोई ग्रह है वह द्वादश भाव में प्रभाव देगा , कोई शष्टम भाव में बैठा ग्रह अष्टम भाव में प्रभाव होगा ग्रह की दृष्टि हो या ना हो| आने वाले लेख में मैं इनका फलित आप लोगो से साझा करूँगा|
लेखक :- श्री गिरीश राजोरिया जी
जिला भिंड, मध्य प्रदेश
Mob.7509930140
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