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मेष लग्न का फल

लग्नानुसार जातक का स्वभाव

ज्योतिषानुसार 12 राशियाँ होती हैं । इन्ही 12 राशियों से 12 लग्नों का निर्माण होता है ।

लग्न अर्थात्

जिस समय जातक का जन्म होता है ।उस समय पूर्व दिशा में उदित राशि ही उस जातक का लग्न कहलाती है।

एक दिन में कुल 12 लग्न होतें हैं। लग्नानुसार जातक का स्वभाव हमें पता चलता है यह जातक किस स्वभाव का है।

सर्वप्रथम पहला लग्न है मेष लग्न

मेष लग्नानुसार स्वभाव

मेष का अर्थ है मेंढा। इस राशि के तारों को मिलाकर यदि काल्पनिक रेखाएं खींची जाए तो मेढ़े की आकृति का निर्माण होता है अतः इसका नाम मेष रख दिया गया है।

इस राशि का विस्तार 0°से30°तक होता है इस राशि में अश्विनी के 4 चरण, भरणी के 4 चरण और कृतिका का 1 चरण होता है।

अश्विनी का दशा स्वामी केतु , भरणी का शुक्र और कृतिका का स्वामी सूर्य होता है।

इस राशि में सूर्य लगभग 14 अप्रैल से 14 मई तक रहता है।

इस राशि का स्वामी मंगल है। यह कालपुरुष का मस्तिष्क है।

स्वभाव

तुनुकमिज़ाज़,झूठी बात बोलने में झिझकते नही,मेष लग्न का व्यक्ति एकांतप्रिय व कम खिलखिलाकर हंसता है।केवल हल्की सी मुस्कुराहट ही उसके चेहरे पर रहती है।इन्हें देखने पर ऐसा लगता है कि ये हमेशा गुस्से में रहते हैं। अभिमानी,शुभ आचरण वाले होते हैं। ये स्वभाव से क्रोधी, साहसी, आत्मविश्वासी, महत्वाकांक्षी, स्पष्टवादी, अत्यधिक परिश्रमी तथा निरंकुश रहना पसंद करतें हैं। दूसरों पर शासन करने के इच्छुक मनगढंत बात कहने वाला होता है|

मेष राशि का आकार है मेंढा, देखने में ऐसा प्रतीत होता है मेष जिसके मस्तक पर सींग है। जो सदैव सिर से अर्थात सामने से वार करता है।इसी प्रकार मेष राशि वाले मुँहफट होतें है।ये सदैव मारने और लड़ने को तैयार रहते हैं।परंतु ये सामने से वार करतें हैं।छिपकर या पीठ पीछे वार करना इन्हें नहीं आता।

मेष लग्न की कुछ अन्य विशेष बातें

👉मेष लगन में यदि मंगल हो तो जातक अत्यधिक गुस्से वाला होता है तथा छोटी छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है।

👉मेष लगन का मंगल जातक को दुबला पतला किन्तु बलवान बनाता है।सिर पर या माथे पर चोट का निशान होता है।

👉मेष लगन के जातक को चेचक शस्त्र से चोट का विशेष भय रहता है।

👉मेष लगन का जातक यह विचार नही करता कि सामने वाले ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया है उस बात को भुलाकर वह सामने वाले का अच्छा ही करता है।

रोग

इन जातकों को ज्वर की पीड़ा,अग्नि भय,शस्त्र भय,तथा मस्तिष्क संबंधी रोगों की संभावना रहती है।

मारक ग्रह

द्वितीयेश और सप्तमेश- शुक्र प्रबल मारकेश।

तृतीयेश षष्टेश-बुध

एकादशेश-शनि

मेष लग्न के लिए शुभ अशुभ ग्रह

शुभ-मंगल,चन्द्र,सूर्य,गुरु,

अशुभ-सूर्य,बुध,शनि

मेष राशि के लिए मित्र राशि

मैत्री व सांझेदारी

सिंह व धनु राशि वाले इनके अच्छे मित्र होते है।

उदाहरण :-

(पुरुष)

जन्म दिनांक :-25-3-1978

जन्म समय :-8.15प्रातः

जन्म स्थान :-बड़ौत, यू.पी.।


मेष लग्न होने के कारण ये एकांत में रहना पसंद करते हैं।तथा खिलखिलाकर नही हँसते।चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट रहती है।कितनी भी हंसी की बात हो ये हल्की सी मुस्कुराहट से काम चला लेते है।

वैसे ये देखने में ऐसे लगते है जैसे कि गुस्से में रहते हैं परन्तु ऐसा है नहीं।लेकिन देखने वाला व्यक्ति ऐसा ही सोचता है।

इनका आचरण अच्छा है,साहसी है,जल्दी ही क्रोधित हो जातें हैं,आत्मविश्वाशी भी हैं,जो कुछ भी कहना है बिल्कुल स्पष्ट कह देते हैं। कुछ कर गुजरने की महत्वकांक्षा है।हर बात का जवाब हमेशा तैयार रहता है।ये निरंकुश रहना पसंद करते हैं इन्हें किसी भी प्रकार का बंधन पसंद नही है।दुसरो पर भी अपना अधिकार स्थापित करतें हैं अर्थात इन्हें दुसरो पर शासन करना अच्छा लगता है। बात को बढ़ाचढ़ाकर कहना इनकी आदत है। ये मुँहफट है अर्थात जो भी कहना है सामने कहते हैं।किसी पर छिपकर वार करना इन्हें पसंद नही जो भी करते हैं सामने से आकर करते हैं।

इनका विशेष गुण :-

कोई इनके साथ कैसा भी व्यवहार करें लेकिन आवश्यकता पड़ने पर ये सब बातें भूलकर उनके साथ अच्छा ही व्यवहार करते हैं।

विशेष :-

इस प्रकार मेष लग्न के जातक के ये कुछ स्वाभाविक गुण है जो उसमे पाए जाते है लग्नेश की स्थिति के अनुसार ये किसी जातक में कम और किसी में अधिक पाए जातें हैं।

लेखिका का परिचय

प्रवचन प्रभविका मधुर व्याख्यानि जैन साध्वी श्री भावना जी महाराज (डबल.एम.ए.)

गुरानी:-उग्र तपस्विनी संकट मोचीनी जैन साध्वी श्री चंदना (बिल्लो)जी महाराज

इन्होंने जैन धर्म में 4 फरवरी 1996 को दीक्षा ग्रहण की

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