आत्मकारक ग्रह का परिचय
जिंदगी में बहुत कम लोग होते हैं जिनको अपनी जिंदगी का लक्ष्य पता होता है जिनको यह पता होता है कि जीवन जिया कैसे जाता है.अपनी आत्मा से साक्षात्कार कर लेना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य हैं.....
जैमिनी ज्योतिष में इस से जुडी जो जानकारी है आइये वह जानते है |
#जैमिनी ज्योतिष में आत्म कारक एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है.....जन्मपत्रिका में सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक कहा जाता है.
आत्म कारक का अर्थ है एक दिव्य आत्मा जो विभिन्न प्रकार के बंधनों में बंध गई है परंतु उस आत्मा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है. आत्म कारक दो प्रकार के होते हैं,,, एक नैसर्गिक और एक तत्कालिक आत्मकारक..... #सूर्यकोनैसर्गिक_आत्मकारक माना है क्योंकि ज्योतिष में सूर्य आत्मा को दर्शाता है इसी प्रकार आत्म कारक हमारे इस जीवन में आने के उद्देश्य की ओर इशारा करता है| . तत्कालिक आत्मकारक आपकी जन्म कुंडली अनुसार कोई भी ग्रह हो सकता है जिसकी डिग्री की सबसे ज्यादा हो।।। आत्म कारक ग्रह ही हमारे जन्म के #अस्तित्व का कारण बन कर हमें इस जीवन में लाया है | मन में छिपी सूक्ष्म इच्छाओं और कर्मों को पूरा करने के लिए हमें जन्म लेना पड़ता है. आत्म कारक हमारे #आध्यात्मिक या #भौतिक लक्ष्यों की ओर दर्शाता है|
आइए जाने आत्म कारक के बल को कुंडली में कैसे विश्लेषण करें.
आत्मकारक ग्रह किस राशि तथा किस भाव में विराजमान है उस भाव तथा राशि को लग्न माने|
सबसे अधिक अंशों वाला ग्रह यदि उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि ,स्वराशि ,शुभ अर्गला या शुभ कर्तरी में हो तो जातक सौभाग्यशाली तथा हर प्रकार से अच्छा माना गया है|
आत्मकारक का अपनी राशि को दृष्टि देना भी उसके फलों में वृद्धि करता है और बुरे परिणामों तथा फलों से बचाता है|
आत्मकारक से द्वितीय, नवम तथा एकादश भाव को जरूर देखना चाहिए क्योंकि जीवन में मिलने वाले कुटुंब ,भाग्य तथा लाभ से मिलने वाले सुख को आप आसानी से आंकलन कर सकते हैं |
आत्मकारक यदि नीच राशि दुर्बल या शत्रु राशि तथा पा पगला में हो तो जातक को जीवन में शारीरिक तथा मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है |
.......शेष अगले अंक में
#जैमिनी ज्योतिष में ग्रहों की दशा ना होकर राशियों की दशा होती है ,,आत्म कारक अपनी राशि दशा में अपने स्वभाव तथा भाव बल के आधार पर 100% फल देने में सक्षम होता है
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