top of page

समलैंगिकता – ज्योतिष के चश्मे से

Astrology and Homosexuality

विश्व की जनसँख्या लगभग 8 करोड़ है | इतनी बड़ी जनसंख्या में एक ऐसा वर्ग भी जिसके बारे में चर्चा करना भी सहज नही होता है, वह है समलैंगिक समाज| भारत में कुछ लोगो का ऐसा मानना है की यह सोच पाश्चात्य जगत की देन है| परन्तु ऐसा नहीं है खजुराहो के पत्थरो पर उकेरी गयी आकृतियाँ इसका साक्ष्य है|

जो भीड़ से अलग है उनसे समाज डरता है |

इस विषय पर सोच कर ही सिहरन उत्पन्न होती है की कोई कैसे समान लिंग के लोगो के प्रति आकर्षित हो सकता है| पर यह सत्य है और विज्ञान भी इस सत्य को मानता है हाल ही की शोध से यह पता चला है की X क्रोमोसोम्स के अंतिम छोर पर Xq28 नामक एक भाग में बदलाव से यह संभव है की व्यक्ति की सोच शारीरिक संबंधो को लेकर बदल जाए| कारण जो भी हो परन्तु यह एक सच्चाई है जिससे मुंह फेरा नही जा सकता है | ऐसा वर्ग एक सभ्य और आदर्श समाज में अपनी जगह खोज रहा है जहां इनसे डर कम हो और इन्हें यथोचित सम्मान दिया जा सके| आइये ज्योतिष के चश्मे से इस मानसिकता को समझे|

ज्योतिष और समलैंगिकता

ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा ज्ञान स्त्रोत है जहां मनुष्यों के पूरे जीवन को देखा जा सकता है| वहां पर भी इस विषय पर काफी जानकारी मिलती है | मैं इस विषय पर अपने अनुभव बाँटना चाहूंगी | लोगो के शारीरिक सम्बन्ध बनाने की चाह को तीन भागो में बाँटा जा सकता हैं|

  • विपरीत लिंग के लोगो के साथ (Heterosexual)

  • समान लिंग के लोगो के साथ (Homosexual)

  • दोनों लिंग के लोगो के साथ (Bisexual)

कुंडली में समलैंगिकता कैसे देखें ?

कुंडली का सप्तम भाव, मंगल और शुक्र व्यक्ति की सेक्स की इच्छा को दर्शाता है साथ ही द्वादश भाव यह बताता है की व्यक्ति को शारीरिक सुख कितना मिलेगा| चन्द्र की स्थिति आपकी मानसिकता को दर्शाती है | वही राहू और वक्र ग्रह यह बताते है की आप कितने असमान हो| आइये अब देखते है कुंडली पर इन्हें कैसे देखा जाता है :-

उदाहरण कुंडली

10 अगस्त 1986, 10:10am , वाराणसी

यह जातक शारीरिक रूप से स्त्री है परन्तु बौधिक रूप से स्वयं को पुरुष मानता है | स्त्रियों का संसर्ग इसे अधिक पसंद है |

  • लग्न कुंडली - शुक्र (प्रेम) का कारक कुंडली में नीच अवस्था में, राहू – केतु के मध्य स्थित है | मंगल वक्री अवस्था में है | सप्तम का स्वामी भी वक्री है और सप्तम भाव और चन्द्र दोनों राहू और केतु से प्रभावित है|

  • नवांश कुंडली – नवांश कुंडली में भी सप्तम भाव का स्वामी, मंगल और शुक्र तीनो राहू -केतु के साथ है |

ऐसी स्थिति में असमानता स्वाभाविक है |

उदाहरण कुंडली

17 सितम्बर 1981, 21:35, गुरुग्राम

  • यह एक विवाहिता स्त्री की कुंडली है जिसके विवाह से पूर्व एक कन्या से शारीरिक सम्बन्ध थे| अब जीवन सुचारू रूप से चल रहा है | इसकी कुंडली में भी सप्तमेश मंगल स्वयं हो कर नीच और राहू के साथ है और राहू युत मंगल की दृष्टि शुक्र पर है |

  • नवांश कुंडली में भी सप्तम भाव में राहू है |

परन्तु असमानता किस दर्जे की होगी यह बताना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि समलैंगिक लोगो की संख्या कम है और भारत में वह खुल कर सामने आने में भी कतराते है | समाज को LGBT (Lesbian – Gay – Bisexual- Transgender ) की उपस्थिति को नकारना नही चाहिए अपितु इन लोगो को भी समाज में उचित स्थान मिलना चाहिए|

यदि लेख पसंद आये तो LIKE करना न भूलें, और यदि आप भी किसी ऐसे व्यक्ति को जानते है तो उसकी जन्म तिथि और विचार हमसे साझा करें | आपकी निजता का पूर्ण रूप से ध्यान रखा जाएगा|

Comments


Featured Posts
Recent Posts
Archive
Search By Tags
Follow Us
  • Facebook Basic Square
  • Twitter Basic Square
  • Google+ Basic Square
bottom of page