कामुकता और ज्योतिष भाग 2
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बुध – नाम बड़े और दर्शन छोटे
बुध नपुंसक ग्रह है| बुध द्वादश में हो तो व्यक्ति सम्बन्ध के समय हंसी मजाक और माहौल को हल्का रखता है| पूरे दिन कामुक बातें कर सकता है परन्तु सम्बन्ध के समय शीघ्रता रहती है| आप कह सकते है की यदि बुध द्वादश में हो तो संबंधो से पहले बौधिक स्तर मिलना चाहिए |
गुरु – धर्म कर्म में लिप्त
बृहस्पति द्वादश भाव में हो तो व्यक्ति की मैथुन क्रिया में रूचि कम होती है| इस तरह की क्रियाएं उन्हें बचकानी लगती है| अत्यधिक धार्मिक और जिम्मेदार होने के कारण इस तरह के सम्बन्ध में रूचि नहीं ले पाता है| माह में केवल 1 या 2 बार काम क्रिया में लिप्त होते है|
शुक्र – वैवाहिक जीवन का रस
शुक्र कारक है मधुर रिश्तो का| यदि बारहवे घर में शुक्र हो तो व्यक्ति काफी रूमानी होता है| अपने साथी की खुशियों का ध्यान रखते हुए संबंधो में लिप्त होता है| पहले माहौल को रंगीन बनाता है, उसके बाद मुख्य क्रिया पर आता है| ऐसे व्यक्तियों को अपने चरित्र का विशेष ध्यान रखना चाहिए|
शनि – वृद्ध अवस्था
शनि विरक्ति का कारक है| द्वादश में शनि हो तो व्यक्ति के काम इच्छाएं कम होती है| जातक स्वयं को मैथुन क्रिया में सहज महसूस नहीं कर पाता है| शनि इस भाव में बैठ कर काम इच्छाओ पर सबसे बुरा प्रभाव डालता है|
राहू – माया छलावा
राहू, छाया ग्रह है, अतः इसका अपना कोई प्रभाव नहीं होता परन्तु यदि इसे शुक्र का साथ द्वादश में मिल जाए तो व्यक्ति शादी के बाद बाहर संबंधो के लिए जा सकता है| वहीँ यदि शनि का साथ राहू को मिले तो बड़ी उम्र के व्यक्ति अधिक पसंद आते है|
केतु - विरक्ति कारक
केतु के लिए भी कमोबेश राहू वाली स्थिति ही रहेगी, परन्तु केतु स्वाभाव से विछोह कारक है अतः यहाँ बाहर सम्बन्ध तो दूर जीवन साथी के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने से घबराएगा| गुरु केतु का योग द्वादश में हो तो उसे इस तरह के सम्बन्ध बचकाने लगेंगे|
अगले अंक में बात करेंगे की नवांश कुंडली किस प्रकार शारीरिक संबंधो को दर्शाती है|
नवांश कुंडली और काम इच्छाएं
*इन नियमो को सीधे कुंडली पर नहीं लगायें| द्वादश में स्थित राशि, लग्न पर ग्रहों की दृष्टि उपरोक्त नियमो को प्रभावित कर सकता है|